कभी भूले नहीं हम तो वो बीते कुरबतों के दिन...!
तुम्हें क्या याद आते हैं कभी वो फासलों के दिन..!
ज़हन की वादियों में ख्वाब की फसलें उगा करतीं.!
कि अब भी ढूंढते हैं वो सुहाने सिलसिलों के दिन..!
घना कोहरा भी रहता है कि कुछ दिखता नहीं हमको.!
बड़ी मुश्किल में मिलते हैं मगर ये सर्दियों के दिन....!
कभी बादल मचलते हैं,, कभी सावन बरसता है....!
मगर अब क्यों नहीं मिलते वो भीगे बारिशों के दिन.!
थी तेरी झील सी आँखें,, मेरा दिल भी समुंदर था...!
मैं अब तक ढूँढता हूँ वो पुराने साहिलों के दिन ....!!
तुम्हें क्या याद आते हैं कभी वो फासलों के दिन..!
ज़हन की वादियों में ख्वाब की फसलें उगा करतीं.!
कि अब भी ढूंढते हैं वो सुहाने सिलसिलों के दिन..!
घना कोहरा भी रहता है कि कुछ दिखता नहीं हमको.!
बड़ी मुश्किल में मिलते हैं मगर ये सर्दियों के दिन....!
कभी बादल मचलते हैं,, कभी सावन बरसता है....!
मगर अब क्यों नहीं मिलते वो भीगे बारिशों के दिन.!
थी तेरी झील सी आँखें,, मेरा दिल भी समुंदर था...!
मैं अब तक ढूँढता हूँ वो पुराने साहिलों के दिन ....!!