नाव कागज की कभी,, हमने बनाई थी बहुत
सागरों के पानियों में,, फिर डुबाई थी बहुत ..
वो नहीं समझे अगर,, इसमें हमारी क्या खता
यूँ तो गज़लें प्यार की उनको सुनाई थी बहुत
फिर वही सागर वही साहिल है जिसके दरमियां
हमने तुमने प्यार की,, कसमें उठाई थी बहुत...
साथ थे जब तो तुम्हीं से हमको कुछ गज़लें मिली
बस वही तन्हाइयों में,,, गुनगुनाई थी बहुत ......
आज उनको है ये शिकवा वो मोहब्बत क्या हुई
जो की तुमने बेवजह,, पहले जताई थी बहुत
क्या पता इस बात पर क्यों चलते चलते रुक गयी
उन कलमकारों ने यूँ,, कलमें चलाई थी बहुत ....
सागरों के पानियों में,, फिर डुबाई थी बहुत ..
वो नहीं समझे अगर,, इसमें हमारी क्या खता
यूँ तो गज़लें प्यार की उनको सुनाई थी बहुत
फिर वही सागर वही साहिल है जिसके दरमियां
हमने तुमने प्यार की,, कसमें उठाई थी बहुत...
साथ थे जब तो तुम्हीं से हमको कुछ गज़लें मिली
बस वही तन्हाइयों में,,, गुनगुनाई थी बहुत ......
आज उनको है ये शिकवा वो मोहब्बत क्या हुई
जो की तुमने बेवजह,, पहले जताई थी बहुत
क्या पता इस बात पर क्यों चलते चलते रुक गयी
उन कलमकारों ने यूँ,, कलमें चलाई थी बहुत ....
वाह शंकर भाई साहब... बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंइसी पर दो लाइन मुझ से भी बन गयी... गौर फरमाए..
यूँ तो मिल के उनसे, बातें हमने बताई थी बहुत,
बातों ही बातों में दिल की चाहत जताई थी बहुत...
क्या बात है विनय जी ......!!!जब भी कुछ कहते हैं लाजवाब कहते हैं ,धन्यवाद,,
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar gazal hai kargeti ji. meri bhi shubhkaamnaayen!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
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