सोमवार, 19 सितंबर 2011

हम से कोई दोस्त भी अब बेवजहा मिलता नहीं..!!

इस कदर बादल घिरे हैं,, आसमां मिलता नहीं,
कांच के टुकड़े बहुत हैं,, आइना मिलता नहीं..|

हम अंधेरों से निकल कर इस तरफ आये तो हैं,
इन उजालों में भी लेकिन रास्ता मिलता नहीं |

मंजिलों की चाह ने,, सबको अकेला कर दिया,
हमसफर को अब कोई भी खोजता मिलता नहीं|

क़त्ल खुद को कर दिया जिस रोज से उस शख्स ने   
कोई भी क़ातिल उसे अब,, ढूँढता मिलता नहीं ...!

दुश्मनों से दोस्ती करने को अब,, मजबूर हैं....!!
हम  से कोई दोस्त भी अब बेवजहा मिलता नहीं.!

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