तब मुखर स्नेह और प्यार के लिए ,,
महीनों की प्रतीक्षा के बाद....
ये दिन आता था,
जो हमको अन्दर तक स्नेहमय कर जाता था |
तब कहाँ सोचते थे...
कि एक दिन ऐसा भी आएगा ...
कि राखी का दिन की याद मेरे ऑफिस का
कर्मचारी मुझे दिलाएगा ........
घर के मंदिर में भगवानों को राखी चढा कर,
फिर स्वंय राखी बंधवाना,,
कितना भावपूर्ण होता था...
बहन के हाथ से वो मिठाई खाना..!!
देखते ही देखते आज.....
सब कितना कुछ बदल गया है...!!
इस आधुनिकता से हमको जो कुछ मिला है,
उससे कहीं अधिक हमारे हाथ से निकल गया है ...!!
मैंने भी सदस्यता ग्रां कर ली है करगेती सर ...
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण और यथार्थ दर्शित करने वाली रचना के लिए बधाई /साधुवाद ....
@Ganesh gupta sir....!!बहुत बहुत धन्यवाद....!! "तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है....??"
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