मंगलवार, 22 जुलाई 2014

मित्रों , इस बार की ग़ज़ल कुछ लीक से हटकर .....आशा है पसंद आयेगी |

कभी सागर हमारा है,...... कभी कतरा नहीं होता
सुनहरे ख़्वाब का हर सिलसिला सच्चा नहीं होता

जुबां ख़ामोश थी लेकिन ....वो चेहरे बदगुमां से थे
मगर वो पढ़ गए थे हम कि जो लिक्खा नहीं होता

कहीं शोहरत में रुसवाई, कहीं महफ़िल में तनहाई
कि अक्सर वो ही क्यों होता है जो सोचा नहीं होता

नशा कोई भी हो,, कुछ देर हो...... तो क्या बुराई है
हमेशा होश में रहना भी तो........ अच्छा नहीं होता

पुरानी धुल खाती... कुछ किताबों.... में मिलूँगा मैं
नए लोगों की महफ़िल में..... मेरा चर्चा नहीं होता |

............तो फिर मित्रों ..कैसी लगी ये नए तेवर की ग़ज़ल....??

***शंकर करगेती***

रविवार, 29 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

कभी भूले नहीं हम तो वो बीते कुरबतों के दिन...!
तुम्हें क्या याद आते हैं कभी वो फासलों के दिन..!

ज़हन की वादियों में ख्वाब की फसलें उगा करतीं.!
कि अब भी ढूंढते हैं वो सुहाने सिलसिलों के दिन..!

घना कोहरा भी रहता है कि कुछ दिखता नहीं हमको.!
बड़ी मुश्किल में मिलते हैं मगर ये सर्दियों के दिन....!

कभी बादल मचलते हैं,, कभी सावन बरसता है....!
मगर अब क्यों नहीं मिलते वो भीगे बारिशों के दिन.!

थी तेरी झील सी आँखें,, मेरा दिल भी समुंदर था...!
मैं अब तक ढूँढता हूँ वो पुराने साहिलों के दिन ....!!

गुरुवार, 2 अगस्त 2012


एक भावपूर्ण अहसास का नाम है राखी....!!

हाँ, उस भोले बचपन की
संजोई हुई कुछ मीठी यादों के अनमोल अहसास....!!
तब मुखर स्नेह और प्यार के लिए ,,
महीनों की प्रतीक्षा के बाद....
ये दिन आता था,
जो हमको अन्दर तक स्नेहमय कर जाता था |

तब कहाँ सोचते थे...
कि एक दिन ऐसा भी आएगा ...
कि राखी का दिन की याद मेरे ऑफिस का
कर्मचारी मुझे दिलाएगा ........

घर के मंदिर में भगवानों को राखी चढा कर,
फिर स्वंय राखी बंधवाना,,
कितना भावपूर्ण होता था...
बहन के हाथ से वो मिठाई खाना..!!

देखते ही देखते आज.....
सब कितना कुछ बदल गया है...!!
इस आधुनिकता से हमको जो कुछ मिला है,
उससे कहीं अधिक हमारे हाथ से निकल गया है ...!!

रविवार, 24 जून 2012

जीवन क्या है.....................!!!!!!!!!!!

जीवन क्या  है......??

सदियों से अपूर्ण...
और अनुत्तरित प्रश्न है |
मगर ..........
एक बार फिर इस का उत्तर..
ढूँढने का मेरा मन है | 

शैशवकाल से वृद्ध होने तक,
जीवन मिलने से - इसको खोने तक,
अनेक अनुभव,, कई प्रशिक्षण लेने हैं |
कुछ क़र्ज़ लेने भी हैं
और कुछ वापस देने हैं |

जीवन की बगिया में,
सपनों के रंग-बिरंगे...
फूल भी खिलते हैं |
कभी बहारों के मौसम,
तो कभी पतझर भी मिलते हैं |

इस यात्रा के मध्यान तक आते आते ...
सर पर कड़ी धूप और,
पैरों में छाले भी आते हैं |
मगर फिर भी कुछ लोग मुस्कराते हुए...
आगे बढते जाते हैं |

काफिला यूँ ही चलता रहता है
कुछ साथी आगे निकल जाते हैं ...
कुछ पीछे छूट जाते हैं और ,
कुछ खो जाते हैं |
कुछ पास तो होते हैं,
मगर अजनबी हो जाते हैं...| 

इस अनवरत यात्रा में,
चलते चलते शरीर रुपी ये वाहन,
एक दिन थक कर रुक जाता है |
और आत्मा का पंछी, इसे छोड़ कर
कहीं दूर उड़ जाता है |

अंत में.....
मुझे लगता है कि .....
होश संभालने से लेकर,
यहाँ से जाने तक,
अगर हर हाल में, हर पल चेहरे पर मुस्कान रहे..
खुद खुश रहकर मुस्कानें बांटें और...
भरपूर जीने का अरमान रहे......
तो मुश्किल सा लगने वाला...
ये सफर भी बहुत आसान रहे .......!!!!!
.....बहुत आसान रहे  .........!!!!!!   

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

मेरे कर्फ्यू के शहर का, एक मंज़र दिल में है.......!!!

एक सहरा है नज़र में, और समंदर दिल में है,
मुस्कराहट है लबों पर और खंजर दिल में है.!

हर किसी दर पे है सांकल और खिड़की बंद है
मेरे कर्फ्यू के शहर का, एक मंज़र दिल में है.!

नाउम्मीदी बन के मुखबिर बेबसी से जा मिली
बेकरारी का अनोखा सा,, बवंडर दिल में है....!

आईने को,, तोड़ने की,, साजिशें देखो ज़रा...
हाथ में हैं फूल कितने और पत्थर दिल में हैं.!

वक्त ने बेघर किया तो भी हमें परवाह क्या..
चाँद से भी खूबसूरत खुशनुमा घर दिल में है.!

मुझे इस उम्र में बच्चा,,, बना देता है वो बच्चा...........

बिना ही बात, रातों को, जगा देता है वो बच्चा,
मुझे कितने सवालों में,, फंसा देता है वो बच्चा|

कभी मुस्कान में उसकी,,,,, सवेरा ढूँढ लेता हूँ,
कभी रोकर मुझे भी तो, रुला देता है वो बच्चा|

मुझे मंदिर की,मस्जिद की ज़रूरत ही नहीं होती,
मुझे भगवान की मूरत,, दिखा देता है वो बच्चा|

मैं अपनी उम्र, अपनी उलझनों को भूल जाता हूँ,
मुझे इस उम्र में बच्चा,,, बना देता है वो बच्चा.|

कभी तनहाइयां होती हैं,,, तो मैं सोचता भी हूँ..,
मुझे पल में कभी मुझसे मिला देता है वो बच्चा|