शुक्रवार, 9 मार्च 2012

मेरी कश्ती है तूफां में, मुझे कुछ डर नहीं होता

मेरी कश्ती है तूफां में, मुझे कुछ डर नहीं होता
ज़मीं  मेरी फलक मेरा , कभी बेघर नहीं होता ,
सुबह से शाम हो जाये , कोई अंजाम हो जाए
मैं तेरा हूँ, तू मेरा है, ये चर्चा आम हो जाये ...
यही तो चाहता हूँ मैं, मगर अक्सर नहीं होता
मेरी कश्ती है तूफां में  ...............................
बहारें दिल में होती हैं ,नज़ारे दिल में होते हैं ,
कहीं भी दूर हो गर तू ,सहारे दिल होते हैं ......
मैं तेरे साथ हूँ पल - पल कभी बेघर नहीं होता,
मेरी  कश्ती है तूफां में .................................
कभी आंधी में तूफां में,कहीं घिरते हैं जब बादल
तुझे मैं ढूँढता हूँ,, सब मुझे कहते रहें पागल
मेरी आखों से फिर भी  दूर  वो मंज़र नहीं होता...
मेरी कश्ती है तूफां में....................

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