सोमवार, 26 दिसंबर 2011

हाथ मिल जाते हैं लेकिन दिल मिला होता नहीं........

यूँ किसी भी बात पर,,,, उन से  गिला होता नहीं
पर मोहब्बत का भी अब तो सिलसिला होता नहीं

खुश्बुओं को क्यों मगर,,,,,, सब हैं वहीँ पर ढूंढते
जिस किसी गुलशन में कोई गुल खिला होता नहीं

यूँ हवा के एक झोंके से,,,,,,,,,, उखड जाते हैं पेड़
और कभी तूफ़ान में,,,,,,,, पत्ता हिला होता नहीं

हम भी तो महरूम रहते,,,,, उस नए अहसास से
जिंदगी के मोड़ पर,,,,,,, गर वो मिला होता नहीं

दोस्तों की महफ़िलों में,,,,,, कहकहों के दरमियाँ
हाथ मिल जाते हैं लेकिन,, दिल मिला होता नहीं 

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

इस जिंदगी से क्या मिला क्या ना मिला.....................

इस ज़िन्दगी से क्या मिला क्या ना मिला,
इस ज़िन्दगी को क्या दिया क्या ना दिया ,
क्या कहें मगर, जैसा भी है सफ़र ...........
कुछ भी नहीं हमें, इसका शिकवा गिला....
इस जिंदगी से क्या मिला......................

क्या कहूँ क्यों भीड़ में, तनहा सा रहता हूँ,
फिर भी मुस्काकर यहाँ, हर बात कहता हूँ
ना जाने कब से चल रहा ये सिलसिला .......
इस ज़िन्दगी से क्या मिला......................


पाँव धरती पर, फलक पर हाथ हैं मेरे,
दुआओं के बहुत से काफिले भी, साथ हैं मेरे,
मुझको अपना क्यों लगा, जो भी मिला.....,
इस ज़िन्दगी से क्या मिला......................

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

जाने कौन नज़र आता है अपनी ही परछाई में........

भीड़ में हरदम मुस्कायेंगे,,,, रोयेंगे तनहाई में,
हम शोहरत के मोती,, ढूँढेंगे अपनी रुसवाई में|

खौफ नहीं होता है कुछ भी धरती से जुड़ जाने पर
लेकिन अक्सर डर लगता है,, पर्वत सी ऊंचाई में

यूँ तो अक्सर चुप रहता है कभी कभी मुस्काता है
जाने क्या क्या अर्थ छुपे हैं,, सागर की गहराई में

कभी सुबह मुसका जाती है कभी शाम शरमा जाती
धडकन धडकन खिल उठती है मौसम की अंगडाई में

एक उम्र से मैं उसको,,,, पहचान नहीं पाया लेकिन
जाने कौन नज़र आता है,,, अपनी ही परछाई में..!

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

..तुम्हारे खत............!!

तुम्हारे खत..........!!!
वो फूल-पत्तियों के बॉर्डर वाले कागज पर
तुम्हारी नाज़ुक उँगलियों से,
लिखे हुए ....
तुम्हारे खत.........!!
जाने कौन सी तसव्वुर की वादियों में
ले गये मुझे,
क्या पता, किस रूहानी खुशबू
का अजब तोहफा दे गये मुझे,
तुम्हारे खत.........!!
कितने तूफ़ान, कितने ख्वाब
कितने अरमान बिखरते रहे,
मगर फिर भी आज तक मेरी रूह को,
रोशन करते रहे, हाँ...
तुम्हारे खत..........!!
तनहाइयों में इनके साथ,
मैंने बातें की हैं..........
तुम्हारा वही अक्स ढूंढते
कई रातें की हैं ,
ज़माने के लिए शायद..
ये फकत कहानी और किस्सा हैं.....
मगर मेरे लिए तो जिंदगी का,
सबसे अहम हिस्सा हैं....
तुम्हारे खत...............!!!!

रविवार, 27 नवंबर 2011

मैं ऐसा भी कमज़ोर नहीं............!!!!

गुज़रते हुए वक्त को कैद कर पाना,
शायद किसी  के बस में नहीं,
मगर हाँ, वक्त की आगोश में कैद...
हर लमहे को भरपूर जी पाना,
इतना मुश्किल भी  नहीं,,
और जब तक हम जिंदा हैं,
तब तक हमको जीने न दे, ये वक्त...
ऐसा कातिल भी नहीं|
वक्त, इस जिस्म को बूढा ज़रूर कर सकता है, मगर
मेरे दिल, मेरी रूह पर इसका कोई जोर नहीं...
मेरा बचपन, मेरी हंसी और मेरी जवानी..
कोई मुझ से छीन सके,
मैं ऐसा भी कमज़ोर नहीं.............!!!!
     

सोमवार, 19 सितंबर 2011

हम से कोई दोस्त भी अब बेवजहा मिलता नहीं..!!

इस कदर बादल घिरे हैं,, आसमां मिलता नहीं,
कांच के टुकड़े बहुत हैं,, आइना मिलता नहीं..|

हम अंधेरों से निकल कर इस तरफ आये तो हैं,
इन उजालों में भी लेकिन रास्ता मिलता नहीं |

मंजिलों की चाह ने,, सबको अकेला कर दिया,
हमसफर को अब कोई भी खोजता मिलता नहीं|

क़त्ल खुद को कर दिया जिस रोज से उस शख्स ने   
कोई भी क़ातिल उसे अब,, ढूँढता मिलता नहीं ...!

दुश्मनों से दोस्ती करने को अब,, मजबूर हैं....!!
हम  से कोई दोस्त भी अब बेवजहा मिलता नहीं.!

रविवार, 18 सितंबर 2011

कहीं रुसवा न हो जाऊं,,, तेरी तस्वीर को लेकर|

ज़माना रश्क करता है,,, मेरी तहरीर को लेकर,
कहीं रुसवा न हो जाऊं,,, तेरी तस्वीर को लेकर|
मेरे जब पाँव धरती पर,, फलक पर हाथ होते हैं,
मुझे तब फख्र होता है,, मेरी तकदीर को लेकर|
कई दिन से बनाने की,,, बहुत की कोशिशें मैंने,
परेशां था बहुत दिन से,, तेरी तस्वीर को लेकर|
तेरी मुस्कान,,,,मेरी जिंदगी का ख्वाब होती है ,
मुझे कुछ शक नहीं इस ख्वाब की ताबीर को लेकर

सोमवार, 9 मई 2011

यूँ तो गज़लें प्यार की उनको सुनाई थी बहुत .............

नाव कागज की कभी,, हमने बनाई थी बहुत
सागरों के पानियों में,, फिर डुबाई थी बहुत ..

वो नहीं समझे अगर,, इसमें हमारी क्या खता
यूँ तो गज़लें प्यार की उनको सुनाई थी बहुत

फिर वही सागर वही साहिल है जिसके दरमियां
हमने तुमने प्यार की,, कसमें उठाई थी बहुत...

साथ थे जब तो तुम्हीं से हमको कुछ गज़लें मिली
बस वही तन्हाइयों में,,, गुनगुनाई थी बहुत ......

आज उनको है ये शिकवा वो मोहब्बत क्या हुई
जो की तुमने बेवजह,, पहले जताई थी बहुत


क्या पता इस बात पर क्यों चलते चलते रुक गयी
उन कलमकारों ने यूँ,, कलमें चलाई थी बहुत ....





गुरुवार, 5 मई 2011

दूधमुहों को जूठे बर्तन धोते देखा है...............

हमने सूरज को भी दिन में सोते देखा है
और पूनम के चाँद को नयन भिगोते देखा है

सिसक रही है हंसी रोककर आंसू अब अपने
आँख बचा कर मुस्कानों को रोते देखा है

जिनकी किस्मत में बस रातें ही रातें होती
उनको नए नए सपने संजोते देखा है

शैतानों की झोली में ही क्यों खुशियां सारी
दूधमुहों को जूठे बर्तन धोते देखा है

राजनीति के ग्रह कुछ ऐसे बैठे है यारो
अनहोनी को हमने अक्सर होते देखा है 

सोमवार, 2 मई 2011

तुमने मुस्काकर हवाओं से न जाने क्या कहा............

आईने को देखकर मैं किस कदर डरता रहा.
मेरा चेहरा था मुझे ही अजनबी लगता रहा.

तुमने मुस्काकर हवाओं से न जाने क्या कहा,
बेवजह तूफ़ान मुझ से रात  भर  लड़ता रहा.

था महल मेरे लिए मिटटी का ये कच्चा मकां,
कौन मेरे नाम पर इस ताज को लिखता रहा.

चाँद की मजबूरियाँ थी या की साज़िश रात की,
बादलों की ओट में क्यों चाँद क्यों छिपता रहा.

बेवफा होते ही हैं ये ख्वाब सबको है यकीं ,,
फिर भी इनके वास्ते हर शख्स क्यों मरता रहा. 

शनिवार, 30 अप्रैल 2011

ग़ज़ल से प्यार करता हूँ .....

ग़ज़ल की बात करता हूँ ,ग़ज़ल से प्यार करता हूँ
मैं इसका हूँ ये मेरी है ,यही इज़हार करता हूँ....!!!
कोई पागल समझता है ,कोई दीवाना कह देता ...
मगर मैं हूँ की वो ही गलतियाँ हर बार करता हूँ!!
मुझे है इश्क रातों से, मैं दिन की भीड़ से डरता
मेरी दुनिया है सपनों से मैं ये स्वीकार करता हूँ .
ग़ज़ल की बात करता हूँ ......................................